भारत में सुप्रीम कोर्ट द्वारा आवारा कुत्तों पर हाल ही में लिए गए निर्णय ने देशभर में गहरा प्रभाव डाला है। दिल्ली और एनसीआर समेत पूरे भारत में करीब 10 लाख आवारा कुत्ते हैं, जिनकी स्थिति सुधारने के लिए कोर्ट ने कई अभूतपूर्व निर्देश जारी किए हैं।
क्यों उठाया गया मामला?
भारत में ‘आवारा कुत्तों’ का मुद्दा लंबे समय से चिंता का विषय रहा है। दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम और आसपास के क्षेत्रों में पिछले कुछ वर्षों में कुत्तों द्वारा काटे जाने के मामले तेजी से बढ़े हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में वैश्विक रेबीज मौतों का 36% हिस्सा है। इसी के चलते अगस्त 2025 में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया और तुरंत सख्त आदेश जारी किए कि सभी आवारा कुत्तों को पकड़कर शेल्टर (आश्रय गृह) में रखा जाए और उन्हें सड़कों से हटाया जाए।
पुराने आदेश की आलोचना
पहले कोर्ट ने 11 अगस्त 2025 को निर्देश दिया था कि सभी कुत्तों को उनकी मौजूदा जगहों से पकड़कर नए बनाए गए शेल्टर में रखा जाए, जिससे न सिर्फ स्थानीय प्रशासन पर भारी दबाव पड़ा, बल्कि पशु कल्याण संगठनों ने भी इसका विरोध किया। ऐसे आदेश भारत के 2001 के कानून की भावना के विपरीत थे, जिसमें कुत्तों को पकड़कर उनकी नसबंदी (Sterilization), टीकाकरण (Vaccination) और फिर वहीं छोड़ने का प्रावधान है।
सुप्रीम कोर्ट का संशोधित फैसला: मानवता और सुरक्षा का संतुलन
सार्वजनिक विरोध और पशु कल्याण संगठनों की याचिकाओं के चलते कोर्ट ने 22 अगस्त 2025 को अपने फैसले में बदलाव किया। कोर्ट ने न्याय और मानवता दोनों का ध्यान रखते हुए नया आदेश दिया:
- कुत्तों को पकड़कर नसबंदी, डिवर्मिंग व टीकाकरण करवाएं और उन्हीं स्थानों पर छोड़ दें।
- रेबीज या अत्यधिक आक्रामक व्यवहार वाले कुत्तों को ही शेल्टर में रखा जाएगा।
- सार्वजनिक स्थानों पर कुत्तों को खाना खिलाना प्रतिबंधित होगा।
- हर वार्ड में निर्धारित फीडिंग ज़ोन बनाए जाएंगे।
- NGO को सुविधाएं शुरू करने के लिए आर्थिक मदद दी जाएगी।
- कोई भी व्यक्ति या संस्था अधिकारियों के कार्य में बाधा नहीं डाल सकती।
यह नए निर्देश पूरे भारत के लिए लागू होंगे—not सिर्फ दिल्ली और एनसीआर के लिए।
पशु अधिकार और जन सुरक्षा दोनों के लिए क्यों ज़रूरी है नया फैसला?
जनहित : रेबीज और सुरक्षा
आवारा कुत्तों द्वारा काटे जाने के मामले व रेबीज संक्रमण के कारण देश में हजारों मौतें होती हैं। पिछले आदेश में सभी कुत्तों को हटाने का सुझाव दिया गया था, जिससे संक्रमण फैलने की घटनाओं को रोकने की उम्मीद थी।
पशु-अधिकार: मानवता की मांग
भारत में पशुओं के प्रति सहानुभूति और सम्मान की संस्कृति रही है। कई पशु अधिकार कार्यकर्ता और नेता, जैसे अपर्णा एंगुप्त (Humane World for Animals India) और मेनका गांधी, ने कोर्ट के नए फैसले को ‘मानवीय’, ‘अदालती विवेक’ और ‘संतुलित’ बताया। इस फैसले का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा कि कुत्तों को बिना वजह कैद करना अव्यावहारिक और अमानवीय है।
नई नीति के अमल की चुनौतियाँ
- इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी: देश में उतने शेल्टर, पशु चिकित्सक और संसाधनों की भारी कमी है, जितने 10 लाख से ज्यादा कुत्तों के लिए चाहिए।
- तेजी से प्रजनन दर: नसबंदी की दर कुत्तों की ब्रीडिंग से कम है, जिससे संख्या नियंत्रण में मुश्किल आती है।
- स्वास्थ्य सेवाओं की कमी: रेबीज का टीका व अन्य डिवर्मिंग प्रोग्राम पूरे देश में लागू करना जटिल है।
- कार्यान्वयन में भ्रष्टाचार और लापरवाही की संभावना: प्रशासन द्वारा आदेश सही से लागू नहीं होने की आशंका रहती है।
- समाज का विरोध: कुछ वर्गों में कुत्तों को पकड़कर छोड़ना भी विरोध का कारण बन सकता है; लोगों को सुरक्षा चाहिए पर मानवता भी बचानी है।
सामाजिक व सांस्कृतिक प्रभाव
भारत में कुत्तों को कई जगहों पर धार्मिक रूप से भी पूजनीय माना जाता है। उनकी देखभाल के लिए मोहल्ले के लोग आपसी सहयोग से उनका पालन-पोषण करते हैं। ऐसे में सार्वजनिक स्थानों पर खान-पान पर प्रतिबंध लगाने के कोर्ट के फैसले ने भावनाओं को भी प्रभावित किया है। हालांकि तय फीडिंग ज़ोन बनाना एक संतुलित कदम है, जिससे फैले भोजन से गंदगी, लड़ाई या बीमारियों की रोकथाम हो सकेगी।
सरकार, प्रशासन, NGO और नागरिकों की भूमिका
- राज्य प्रशासन: स्थानीय निकायों को शेल्टर, फीडिंग ज़ोन, टीम, और हेल्पलाइन तैयार करनी होगी।
- NGO: नसबंदी, टीकाकरण एवं पशु देखभाल में सहयोग करेंगे।
- जनता: नियमानुसार केवल चिन्हित फीडिंग ज़ोन में खाना दें और आदेशों का पालन करें।
- पुलिस व प्रशासन: आदेशों के उल्लंघन पर कार्रवाई करें।
क्या है आगे की राह?
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि एक राष्ट्रीय नीति बनानी होगी, जिसमें राज्य सरकारें, स्थानीय निकाय, पशु कल्याण संगठन, और आम नागरिक मिलकर काम करें। इस नए मॉडल के आधार पर पूरे देश में आवारा कुत्तों के प्रबंधन का तरीका तय होगा। दिल्ली देश के लिए रोल मॉडल बन सकता है, पर इसमें मजबूत जमीनी अमल और नीति निर्माण की आवश्यकता है।
निष्कर्ष: कोर्ट का आदेश—संवेदनशीलता, सुरक्षा और चुनौती
सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश समाज एवं सरकार दोनों के लिए एक कसौटी है। अगर सही ढंग से लागू किया जाता है, तो भारत में आवारा कुत्तों की समस्या में भारी कमी आ सकती है और मानवता भी बनी रह सकती है। लेकिन इसके लिए जमीनी कार्य, संसाधनों की आपूर्ति, नीति निर्माण और समाज के सहयोग की ज़रूरत है।
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)
1. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का मुख्य उद्देश्य क्या है?
आवारा कुत्तों के गैरकानूनी कैद को रोकना, नसबंदी/टीकाकरण करवाना और जिन्हें संक्रमण/आक्रामकता है, उन्हीं को शेल्टर में रखना।
2. क्या अब कुत्तों को सड़कों पर खाना खिलाना अवैध है?
हाँ, खाना सिर्फ चिन्हित फीडिंग ज़ोन में ही दिया जा सकता है, सार्वजनिक जगहों पर नहीं.
3. नए आदेश किस-किस क्षेत्र में लागू होंगे?
स्वरूप में यह आदेश पूरे भारत में लागू होगा, दिल्ली एनसीआर के मामलों से शुरू होकर।
4. पशु अधिकार संगठन क्यों खुश हैं?
क्योंकि सुझाव के अनुसार पहले से स्वस्थ, नसबंद, टीकाकृत कुत्तों को उनकी जगह छोड़ा जाएगा, अमानवीय कैद नहीं होगी।
5. सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
शहरों एवं कस्बों में संसाधनों की उपलब्धता और सख्ती से आदेशों का जमीनी क्रियान्वयन सुनिश्चित करना।
अंतिम विचार
भारत में आवारा कुत्तों की समस्या समस्या ही नहीं, सामाजिक, नैतिक और प्रशासनिक चुनौती है। सुप्रीम कोर्ट ने इसमें संवेदनशीलता और सुरक्षा दोनों का ध्यान रखा है—लेकिन असल सफलता इस नीति की जमीनी क्रियान्वयन और समाज के सहयोग में है। अगर दिल्ली इसका उदाहरण बनता है, तो बाकी देश भी आवारा कुत्तों की समस्या का मानवतापूर्ण एवं प्रभावी हल पा सकते हैं।